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शादी, एक ऐसा लड्डू माना जाता है जिसे खाने वाला भी पछताता है और जो नहीं खाता वो भी पछताता है। परिवार रुपी सिक्के के दो मुखड़े- पहला पति और दूसरा पत्नी या दूसरे शब्दों में कहें तो वैवाहिक जीवन रुपी गाडी का एक पहिया पति और दूसरा पहिया पत्नी, इन सब के आपसी सामंजस्य के बिना गृहस्थी ऐसी हो जाती है जैसे केरोसीन से चलने वाला ऑटो-रिक्शा। अगर दोनों को आपसी झगड़ों का बिना बखेड़ा बनाये समाधान निकालना आता है तो फिर तो गृहस्थी की गाडी ऐसे दौड़ेगी जैसे कांग्रेस सरकार में प्याज के दाम….
ये पोस्ट लिखने का उदेश्य केवल इस फोटो की भावनाओं को बिना बताये, बिना समझाए आप तक पहुँचाना है। किस प्रकार एक पत्नी उम्र के हर पायदान पर अपने प्रियतम का दामन थाम कर उसकी खुशियों के लिए हर वो कदम उठाती है जो उसे ख़ुशी पहुचाये, पति का भी ये दायित्व बनता है की उसकी ख़ुशी के लिए हर संभव प्रयास करना क्योंकि शायद वो उसकी जिम्मेदारी है।
शादी के समय खायी जाने वाली 7 कसमों में पति पत्नी को वचन देता है की हम साथ-साथ रहेंगे, हर सुख में एक दूसरे के साथ रहेंगे, हर दु:ख में एक दूसरे के साथ रहेंगे, कोई भी धार्मिक कार्य अकेले नहीं करेंगे, तुम्हारे रहने-खाने-चिकित्सा की ज़िम्मेदारी मेरी होगी इत्यादि।
आप में से जो लोग अनुभवी हैं वे शायद मन में सोच रहे होंगे की ‘जब करना तो खुद ही समझ जाओगे इसका महत्त्व’, बाकी तो सबकी अपनी इच्छा है, क्योंकि कुछ लोगों द्वारा एक मुहावरा समाज में बहुत प्रचिलित है कि ” पड़ोसी की बीवी और अपने बच्चे सबको अच्छे लगते हैं।” इसकी सत्यता तो शादी के बाद ही पता चल पाएगी। इन्ही शब्दों के साथ आपके उज्जवल वैवाहिक भविष्य की कामना करते हुए अपनी बात समाप्त करना चाहता हूँ।
धन्यवाद,
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